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४१ पञ्चाङ्ग सम्बन्धी विचार एवं खु मुणी आयाणं । सया सु अक्खायधम्मे विध्य कप्पे
निज्मोसइत्ता। आचारांग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, अध्ययन ६, उद्देशक ३ । , सदा पवित्रता के साथ धर्माराधन करने वाला, आचार पालन करने वाला मुनि धर्मोपकरण के अतिरिक्त सभी वस्तुओं का त्याग कर देता है।
__ पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज इस प्रकार संघ के कार्य को विविध प्रकार की पदवियां देकर पूर्णतया व्यवस्थित करके अमृतसर में निवास करते रहे । __संवत् १६७६ में उन्होंने अमृतसर में दयालचन्द जी बैरागी को दीक्षा देकर उनको तपस्वी मुनि ईश्वरलाल जी का शिष्य बनाया।
मुनि शुक्लचन्द जी महाराज ने कुछ ही वर्षों मे आगम ग्रंथों का अध्ययन कर अपनी असाधारण बुद्धि का परिचय दिया।
आपने संवत् १६७८ में पूज्य श्री की आज्ञा से पसरूर मे जम्मू निवासी श्यामचन्द जी वैरागी को दीक्षा दी।