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प्रात्म शक्ति
गुणेहिं साहू अगुणेहिऽसाहू,
गिएहाहि साहू गुण मुञ्चऽसाहू । वियाणिवा अप्पगमप्पएण
जो रागदोसेहि समो स पुस्जो ॥ दशवकालिक सूत्र, अध्ययन ६, उद्देशक ३, गाथा ११ गुणों से साधु होता है और अगुणों से असाधु होता है। अतएव हे भुमुक्षु ! सद्गुणों को ग्रहण कर और दुगुणों को छोड़ । जो साधक अपने प्रात्मा द्वारा अपने प्रात्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचान कर राग और द्वष दोनों में सम भाव रखता है वह पूज्य है।
संसार में सदा से ही शक्ति की पूजा होती आई है। किन्तु शारीरिक शक्ति को बुद्धि की शक्ति के सामने सदा ही पराजय स्वीकार करनी पड़ती है। सिंह, हाथी, अजगर जैसे महापराक्रमी प्राणी भी मनुष्य की बुद्धि के सामने हार मानते हैं, किन्तु आत्मिक शक्ति के सामने मनुष्य की बुद्धि की शक्ति भी पराजित हो जाती है । माधु महात्माओं को आत्मिक शक्ति के चमत्कार के उदाहरण शास्त्रों मे अनेक भरे पड़े हैं। चण्डकौशिक सर्प ने अपने अत्याचारों से गांव वालों का.मार्ग चलना वन्द कर