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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी दिक किया जाया करता है। अमृतसर मे भी उन दिनों यही हुआ। किसी को लेशमात्र भी सम्पन्न समझा जाता तो उसकी तलाशी तत्काल हो जाती थी और उसके किसी भी मामान को बैंक का बतला कर उसको गिरफ्तार कर लिया जाता था। इस सम्बन्ध मे पुलिस तथा सेना के अत्याचार इतने अधिक बढ़ गए थे कि कोई भी सम्मानित व्यक्ति अपने सम्मान को सुरक्षित नहीं समझता था। लोग इस भय से कि कहीं उनकी किसी वस्तु को वैक को न बतला दिया जाये अपनी मूल्यवान वस्तुओं को भी फेक देते थे। एक बार कुछ श्रावकों ने आकर इस सन्बन्ध मे पूज्य महाराज के सामने निवेदन किया तो पूज्य महाराज बोले
"इक्कीस लोगस का पाठ अथवा ध्यान करते रहो और किसी का माल मत लो और अपना माल मत फेकों। इससे तुम्हारी कुछ भी हानि नही होगी।"
लोगों ने यही किया और उन सब की पुलिस तथा मेना के अत्याचारों से रक्षा हो गई।
xxx महात्मा गांधी ने रौलट विल का देशव्यापी विरोध करने के लिये ३० मार्च १६१६ का दिन नियत किया था। बाद मे इस दिन को बदल कर ६ अप्रैल कर दिया गया। किन्तु दिन बदलने की सूचना दिल्ली मे ठीक समय पर नहीं पहुंची। इससे वहां ३० मार्च को ही जुलूस निकला, हड़ताल हुई और गोली भी चली । यद्यपि अमृतसर में १० अप्रैल से ही व्यवहारिक रूप में सैनिक कानून था, किन्तु जनता ने दिल्ली के गोलीकाड का विरोध करने के लिये यह तय किया कि १३ अप्रैल को जलियानवाला बाग में एक विरोध सभा की जावे । इस सभा को करने का