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प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी उत्तर न देकर सीधे स्वभाव निकल जाया करते थे। इससे उस का साहस और बढ़ गया और वह बिलकुल निकट आकर उनका मखौल उड़ाने लगा। वह लड़का मन्दिर में पूजन करके माथे पर तिलक लगा लिया करता था। ___एक दिन उस लड़के ने श्री गैडेराय जी का मखौल उड़ा कर कहा
"क्या तोवरा सा मुह पर वाधा हुअा है।" .स पर श्री गैंडे राय जी ने केवल इतना ही कहा
"अरे । अपना टीका सभाल।"
मुनि श्री गैंडेराय जी यह कहकर उसकी ओर देखे बिना वहां से चले गए, किन्तु वह उसी समय पछाड खाकर गिरा और वेहोश हो गया। उसके मुख से रक्त की वमन भी हुई। लोगों ने उसकी दशा देखकर उसके द्वारा मुनि गंडेराय जी के साथ किये हुए व्यवहार का यह समाचार सुनाकर उसके माता पिता को उस लड़के की दशा का समाचार भी सुनाया। वह तुरन्त भागे हुए वहां आए और उसे अपने घर ले गए। जब लड़का किसी प्रकार ठीक न हुआ तो उनको ध्यान हुआ कि विना मुनि गैडेराय की शरण गए यह ठीक नहीं होगा। अस्तु उन्होंने आपसे आकर कहा __"महाराज | लड़का नादान था जो आपको प्रतिदिन सताता था। उसकी नादानी पर ध्यान न देकर आप उसे क्षमा करे।"
इस पर उन्होंने उत्तर दिया
"मेरे मन मे उसके प्रति कोई विद्वेष की भावना नहीं है। मैंने तो उससे सीधे स्वभाव कह दिया कि 'अपना टीका