________________
प्रात्म-शक्तिः
३६६ . अस्तु वह अपने घर से निकल कर तुरन्त जंगल में जाकर पूज्य श्री को खोजने लगे। उनके सौभाग्यवश उनको जंगल की झोपड़ियों में पूज्य श्री के दर्शन हो ही गए। उन्होंने पूज्य श्री को देखकर उनके चरणों में पड़ कर उनसे निवेदन किया
"महाराज ! हम बड़े पापी है, जो हमने कल गालियां देकर 'आपको कष्ट दिया । रात मे हमारे तीसरे साथी की कोई अज्ञात व्यक्ति गरदन काट गया। आप हमको क्षमा करदें। कहीं ऐसा न हो कि हमारी भी उसके जैसी गति हो। हम आपकी शरण हैं।"
इस पर पूज्य श्री ने उत्तर दिया ___ "भाई ! हम तो जैन साधु हैं। हमारे लिये तो शत्रु और मित्र, स्तुति करने वाले तथा गाली देने वाले सभी बराबर हैं। हम किसी को शाप नहीं देते, न हमने तुम्हारे उस साथी को ही शाप दिया है । उसको अपने कर्म का फल स्वयं ही मिल गया। इसमें हमारी लेशमात्र भी प्रेरणा नहीं है। तुम निश्चित रहो।"
यह सुन कर वह दोनों बोले
"महाराज ! यह हो सकता है कि हमारे साथी को आपने शाप न दिया हो और न आपका उस पर क्रोध हो, किन्तु . संभव है कि आपका रक्षक कोई देवता हो और यह उसी का कार्य हो । यदि ऐसा हो तो हम लोग अपनी भी कुशल' नहीं मानते । आप कृपा कर हमारे अपराध को क्षमा कर दें। हमारे मन को शांति इसी से मिलेगी।"
इस पर पूज्य महाराज ने उत्तर दिया,