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प्रधानाचार्य
३५३ अव्यवस्थित मुनि वृहत् सम्मेलन में यों ही जाकर एकत्रित हो गए तो वह वहां किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच सकेंगे।"
अपने मन में यह विचार करके आप इस योजना के सम्बन्ध मे परामर्श करने के लिये पूज्य श्री की सेवा में अमृतसर गए। गणी जी ने एज्य श्री की सेवा मे बहुत दिनों तक ठहर कर उनके साथ अखिल भारतीय तथा प्रान्तीय दोनों प्रकार के मुनि सम्मेलनों के विषय मे कई कई बार गम्भीर विचार विमर्श किया । पूज्य श्री ने दोनों ही सम्मेलनों के सम्बन्ध मे अपने अनुभवपर्ण विचार बतलाए।
बहुत कुछ विचार विमर्श के उपरान्त यह निश्चय किया गया, कि पंजाब के मुनियों का एक सम्मेलन चैत्र कृष्ण ६, ७ तथा ८ सवत् १९८८ को होशियारपुर में किया जावे। इस समाचार से पंजाब के मुनि संघ में उत्साह की तहर दौड़ गई। समय केम था। अतएव प्रायः मुनिराज यह समाचार पाकर शीघ्रतापूर्वक होशियारपुर आने लगे। सर्वश्री उपाध्याय
आत्माराम जी महाराज, युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज, गणी उदयचन्द जी महाराज, पंडित श्री नेकचन्दजी महाराज, पडित विनयचन्द जी महाराज, पं० नरंपतराय जी महाराज, पडित श्री रामस्वरूप जी महाराज आदि मुनि अपनी अपनी शिष्य मण्डली के साथ होशियारपुर पधारे । इस प्रकार यह सम्मेलन पंजाब के इतिहास में पहिला ही था।
सम्मेलन का कार्य प्रारम्भ होने पर सर्वसम्मति से गणी उदयचन्द जी महाराज को उसका सभापति चुना गया। उन्होंने अपने सफल नेतृत्व में सब कार्य शान्तिपूर्वक चलाया । पत्री और परम्परा के कटुतापर्ण लम्बे संघर्ष के पश्चात् दोनों पक्ष के