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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी था। रात को तो उसकी छटा निराली ही प्रतीत होती थी। बिजली की रोशनी, दरवाजों तथा तम्बुओं के गुम्बज दूर से बड़े भव्य दिखलाई देते थे। लोंकानगर मे लोग विशेष आनन्द का अनुभव करते थे। इस मेले में समाज के दस लाख से अधिक रुपये खर्च हुए। कहा जाता है कि जितना रुपया लगा उतना काम नहीं हुआ, किन्तु समाज की विकट परिस्थिति मे उतना काम भी कम नहीं था। भिन्न भिन्न आचार्यों की पारस्परिक एकता इस सम्मेलन की एक भारी विशेषता थी । इससे नवयुवकों में भी क्रांति की एक नई लहर उत्पन्न हो गई। साधु सम्मेलन के साथ साथ कांफ्रस तथा नवयुवकों के सम्मेलन भी बड़ी धूमधाम से किये गए। यदि यह सम्मेलन न होते तो नवयुवकों को समाज की सच्ची स्थिति का ज्ञान न होता। इतने मुनिराजों के दर्शन क्या कोई मनुष्य सहस्रों रुपये खर्च करके भी अपने कुटुम्बियों को करवा सकता था ? ___ साधु सम्मेलन द्वारा अपने प्रथम प्रस्ताव में जो मुनिसमिति की स्थापना की गई थी, वह एक क्रांतिकारी कार्य था। वास्तव में यहीं से युगान्तर आरम्भ होता है। इस समय तक स्थानकवासी समाज में पृथक् पृथक आचार्यो के अनेक सम्प्रदाय थे। आरम्भ मे इनकी संख्या बाईस थी, जो बाद में बढ़ कर लगभग बत्तीस तक पहुंच गई। उनमें आपस में एक दूसरे के साथ नहीं के बराबर सम्बन्ध था। यदि किसी को समस्त मुनि संघ से कुछ कहना हो या उनसे कुछ जानना हो तो तब तक इसका कोई भी साधन नहीं था। मुनि समिति की स्थापना करके साधु सम्मेलन ने संगठन का प्रमाण दिया।
इस समिति के लिये पन्द्रह कार्य नियत किये गए। इनमें कुछ कार्य तो ऐसे थे, जिनसे समिति का सिलसिला बना रहे