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प्रधानाचार्य और वह एक युगान्तरकारी स्थायी संस्था बन सके । उसके शेष कार्य साधुओं के उच्च आचरण सम्बन्धी थे।
साधुओं का संगठन करना तथा सम्मेलन के प्रस्तावों को कार्यरूप में परिणत करने का कार्य इसी समिति को दिया गया।
सम्मेलन का कार्य आनन्दपूर्वक चलता रहा। बीच-बीच में एक से एक भयंकर विघ्न वाधायें आई, किन्तु गणी जी के कुशल नेतृत्व में सब समस्याएं सुलझती रहीं और सम्मेलन की गाड़ी बराबर आगे बढ़ती रही।
इस सम्मेलन की सब से अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें श्रद्धय जैनाचार्य पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज को सर्वसम्मति से सम्मेलन का प्रधान चुनकर उनको प्रधानाचार्य बनाया गया । पूज्य श्री के चरणों में अखिल भारतीय जैन समाज की यह श्रद्धांजलि भारत के सभी मुनिराजों के लिये सम्मान तथा सौभाग्य का प्रतीक थी। यदि पंजाबी साधु तथा पंजाब कान्फ्रेंस के कार्यकर्ता राय साहब टेकचन्द तथा रतनचंद जी अमृतसरी आदि इसमें - उत्साहपूर्वक भाग न लेते तो सम्मेलन सफल होना कठिन था।
— इस सम्मेलन में जैन तिथि पत्र के प्रश्न को एक उपसमिति के सुपुर्द करके सम्मेलन को समाप्त किया गया । वास्तव में इस सम्मेलन के द्वारा जैन मुनियों की एकता को एक दृढ़ आधार मिल गया।
सम्मेलन के पश्चात् पंजाब के मुनिराज फिर अपने प्रथम मार्ग से पंजाब की ओर लौट पड़े।