________________
४२
प्रधानाचार्य
.. न वि मुडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो । 'न मुणो रगणवासेन, न कुसचीरेण तावसो॥
उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २५, गाथा ३१ सिर मुडा लेने मात्र से कोई श्रमण नहीं होता, 'ओ३म्' का जप कर लेने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता। निर्जन बन में रहने मात्र से कोई मुनि नहीं होता और कुशा के बने वस्त्र पहिन लेने से कोई तपस्वी नहीं हो सकता।
अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस का डेपूटेशन अमृतसर से आते ही अपने काम में लग गया । उसने अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस की एक जेमरल कमेटी बुलाई । कांफ्रेस की कमेटी का यह अधिवेशन ११ तथा १२ अक्तूबर १९३१ को दिल्ली में हुशा । इसमें कमेटी ने यह स्वीकार किया कि अखिल भारतीय साधु सम्शेलन' को बुलाने की वास्तव में बड़ी भारी आवश्यकता है। अतएव उसने इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिये एक उपसमिति बना दी। इस बैठक में यह भी तय किया गया कि अखिल भारतीय मुनि सम्मेलन यथासंभव फाल्गुण संवत् १९८६ मे किया जावे।