________________
३३८
प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी "आत्माराम जी । आपका कहना यथार्थ है। किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि उनको प्रचारित करने की आना देने से पूर्व मुझे इस सम्बन्ध मे सघ की सम्पति भी जानने का यत्न करना चाहिये।'
पूज्य महाराज के यह शब्द सुनकर उपाध्याय जी बोले
"मेरी तुच्छ सम्मति मे तो इस विषय मे आचार्य तथा उपाध्याय की सम्मति ही पर्याप्त है। प्राचीन काल में यही व्यवस्था थी। मैं इस पर पूर्णतया सहमत हूँ। अतएव आप इस सम्बन्ध मे संघ मे आज्ञा प्रचारित कर दे।"
इस पर पूज्य महाराज ने संघ में इस बात की आज्ञा प्रचा. रित कर दी कि भविष्य में सभी चातुर्मास नवीन जैन तिथि पत्र के अनुसार ही मनाए जावे। __ पूज्य श्री की इस आजा का मुनि संघ ने बहुसंम्मति से स्वागत किया। अतएव इसके पश्चात् पंजाब के प्रायः मुनियों ने पूज्य श्री द्वारा बनाए हुए नवीन जैन तिथि पत्र के अनुसार ही चातुर्मास मनाए।
किन्तु मुनि लालचन्द जी महाराज, आर्या पार्वती जी महाराज तथा मुनि छोटेलाल जी महाराज के साधुओं ने इस नवीन जैन तिथि पत्र को न माना और उन्होंने अपने अपने चातुर्मास पुरानी शैली से ही किये। गणी उदयचन्द जी ने भी अपना चातुर्मास पूज्य श्री के नवीन जैन तिथिपत्र के अनुसार ही किया।
संवत १९७३ के इस चातुर्मास के पश्चात् युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज, गणावच्छेदक मुनि श्री छोटेलाल जी महाराज, मुनि जड़ाऊ चन्द जी महाराज तथा मुनि हीरालाल जी महाराज रोहतक मे एकत्रित हुए। वहां उन्होंने पारस्परिक वादविवाद करके यह निर्णय किया कि