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पञ्चाङ्ग सम्बन्धी विचार
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१० - - हमारे विचार मे श्री पूज्य का केवल पौष और आषाढ़ को ही अधिक अर्थात् लौंद मास मानना जैन सिद्धान्तानुकूल है ।
११ – श्री पूज्य साहिब का चातुर्मास बैठने के पश्चात् पचासवें दिन और चतुर्मासी विहार से सत्तर दिन पूर्व सम्वत्सरी करना भगवान् महावीर स्वामी को सच्ची परम्परा है ।
१२ – भाद्र शुक्ल पञ्चमी को सर्वदा संवत्सरी करना भगवान् महावीर की आज्ञा का यथार्थ अनुकरण है ।
१३ - श्रावण या और किसी मास में संवत्सरी करने की शास्त्र कदापि आज्ञा नहीं देता ।
१४ - प्रत्येक दो मास के पश्चात् कृष्ण पक्ष में आषाढ़, भाद्र, कार्तिक, पौष, फाल्गुण और वैशाख मासों मे तिथि घटाना जैन शास्त्रों के अनुसार है ।
उपरिलिखित सिद्धान्त के विरुद्ध पक्खी पत्र तयार करना ठीक नहीं ।
जैन शास्त्र के अनुसार जैन तिथि पत्रिका में एक युग के सूर्य के ६० मास, ऋतु के ६१, चन्द्र के ६२ और नक्षत्र के ६७ मास लगे हुए है और पांच संवत्सरों के सूर्य के १२० पक्ष और चन्द्र के १२४ पक्ष और ६२ अमावस्या और ६२ पूर्णिमा हैं ।
अत हमारी सम्मति मे 'जो पत्रो है सो शास्त्र है, जो शास्त्र है सो पत्री है ।"
क्रमशः पत्री के सम्बन्ध मे संघ में मतभेद इतना अधिक बढ़ा कि कुछ लोग दूसरा आचार्य तक बनाने का विचार करने लगे | गणी उदयचन्द जी से प्रस्ताव किया गया कि वह नए श्राचार्य का पद संभाल ले । किन्तु गरणी उदयचन्द जी ने संघ