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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी की एकता को बनाए रखने की दृष्टि से इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा ___ "हम सब पूज्य श्री के सेवक है । वे हमारे आचार्य है और हम उनके साधु । यह ठीक है कि इस समय विरोध चल रहा है और उनके साथ सम्बन्ध टूटा हुआ सा है, किन्तु हमको आचार्य श्री का सम्मान करना ही चाहिये। आचार्य श्री जी के पास के संत हमको वन्दना करे या न करे, हम अवश्य बन्दना नमस्कार के द्वारा आचार्य श्री जी का सम्मान करेंगे । आप लोगों के लिये न सही, किन्तु मेरे लिये आचार्य श्री जी के अतिरिक्त एक ओर वन्दना भी आवश्यक है। वह मेरे गुरुदेव को वन्दना है। गुरुदेव श्री गैंडेराय जी महाराज पूज्य श्री की सेवा मे है। मैं उनको भी वन्दना करूगा। गुरुदेव की विनय मैं नही छोड़ सकूगा।" ___ गणी उदयचन्द जी के इन उद्गारों का आदर करते हुए विरोधी मत रखने वाले सभी साधु गणी जी को आगे करके पूज्य श्री की सेवा मे पहुंचे। उन्होंने गणी जी के आदेशानुसार उनकी वन्दना आदि की सभी विधि की। जब इन साधुओं के साथ पत्री और परम्परा के प्रश्न को लेकर चर्चा चली तो पूज्य श्री ने आगम पाठ निकाल कर सब साधुओं के सम्मुख रख दिये और उनके सम्बन्ध में चर्चा करने को कहा। इस पर गणी उदयचन्द जी ने सविनय निवेदन किया
"भगवन् | मैं तो श्री चरणों मे प्रार्थना करने आया हूं, शास्त्रार्थ करने नहीं आया । आप जानते हैं कि यदि मै वादी के रूप में आता तो उसका स्वरूप कुछ और ही होता। हम तो आपके सेवक हैं। हमारा काम प्रार्थना करना तथा आपका काम