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मुनि शुक्लचन्द्र जी की दीक्षा
३३१ सरगोधा से आप सीधे अमृतसर पाए। अमृतसर में आपको अपने गांव दड़ौली का निवासी रामजी लाल नामक एक ब्राह्मण मिल गया। वह जैन श्रद्धा वाला था और दिल्ली में मुनि दीक्षा लेनी चाहता था। किन्तु उस समय उसकी माता ने उसके दीक्षा लेने मे बाधा डाल दी थी। जब वह आपको बाजार में मिला तो उसने आप से कहा
. रामजी लाल-कहो शुक्लचन्द्र ! यहां कहां घूम रहे हो । वर पर तो तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारे लिये रो रो कर प्राण दे रहे हैं । अस्तु तुमको तुरन्त गांव जाकर अपने परिवार के दुख . को दूर करना चाहिये।
इस पर शुक्लचन्द्र जी ने उत्तर दिया
शुक्लचन्द्र-घर तो अब मैं नहीं जाऊंगा । मैं अपने विवाह के सम्बन्ध में उनके विचारों को मानने को तयार नहीं हूं । यदि घर गया तो फिर वही सब चक्कर पड़ेगे। अस्तु घर तो मैं अब नहीं जाऊंगा।
रामजी लाल-अच्छा जब तुमको घर नहीं जाना है तो तुम मेरे साथ चलो। मैं तुमको, ज्ञान, पुण्य तथा धर्म के नए नए स्थान दिखलाऊंगा । वह आपको अपने घर ले गया, जहां उसके पासके ग्रन्थों को देखकर आपको जैन धर्ष का प्रथम वार परिचय मिला। बाद मे वह आप को पूज्य श्री सोहन लाल जी महाराज के पास ले गया। पूज्य श्री ने आप को जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष इन नव तत्वों के सन्बन्ध में उपदेश देकर यह बतलाया कि इस अनादिकालीन भवसागर को मुनि दीक्षा लिये बिना पार नहीं किया जा सकता।