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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी __ स्थानक के बाद रामजी लाल आप को अपने स्थान पर ले जाकर आप से बोला ___"शुक्लचन्द्र ! जिस मार्ग पर तुम जा रहे हो वह तुम्हारे लिये कल्याणकारी नहीं है। इस प्रकार स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने से नवयुवक उत्छखल हो जाता है। तुमको अपना घर छोड़े लगभग तीन वर्ष हो गए। उस समय तुम्हारी आयु सतरह वर्ष की थी। अब तुम पूरे बीस वर्ष के हो चुके हो। युवावस्था बड़ी भयंकर होती है । तुमको अपनी युवावस्था को एक निश्चित मार्ग पर लगा देना चाहिये । यदि तुम ऐसा न करोगे तो संभव है कि तुम किसी पतन मार्ग के पथिक बन जाओ। इस लिये तुम को अब भी समय है। या तो तुम घर जाकर अपने को अपने घर वालों की इच्छा पर छोड़ दो, अन्यथा तुम जैन दीक्षा लेकर मुनि बन जाओ!
इस पर शुक्लचन्द्र जी वोले
"अच्छा, अभी मुझे कुछ दिन इन बातों पर विचार करने दो।'
रामजीलाल-तुम अभी अमृतसर मे कितने दिन ठहरना चाहते हो ? __ शुक्लचन्द्र जी-यदि आप मेरे यहां होने का समाचार घर न भेजे ता मेरा विचार यहा एक मास तक ठहरने का है।
रामजीलाल-तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम यहां आनन्दपूर्वक ठहरा । मैं तुम्हारे घर समाचार नहीं भेजूगा।
इसके पश्चात् रामजीलाल ने आपको साधु बनाने की इच्छा से साधु प्रतिक्रमण याद करने को दिया। आपने भी उसे शीघ्र ही याद कर लिया।