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मुनि शुक्लचन्द्र जी की दीक्षा महिला कुछ दिनों के लिये कारणवश आ कर ठहरी । शुक्लचन्द्र जी जब इस बार अबोहर में रहे तो उसके पार्स मकान खाली कराने की आशा से, प्रायः श्राया जाया करते थे। उसने आप को खोया खोया सा तथा चिंतित सा देख कर जो आप से इसका कारण पूछा तो आपने संकोच करते हुये उसे सारी घटना सुना कर कहा
"मेरी चिन्ता का वास्तविक कारण यह है कि मैं विवाह तो करूगा नहीं। अब इस विवाह की मुसीबत से किस प्रकार छूटू।" ___ स्त्री-तुम्हारा यह सोचना तो उचित नहीं है। माता पिता संतान को जन्म देते हैं तो उसकी सतान का सुख देखने के लिये ही देते हैं। आपको उनकी इच्छा का आदर करके यह विवाह कर लेना चाहिये।
शुक्लचन्द्र-विवाह तो मैं किसी प्रकार भी नहीं करूंगा। चाहे मुझे घर से निकल कर देश विदेश भटकना ही क्यों न पड़े। ____ स्त्री-तब तो इसका यह परिणाम होगा कि एक बार आप को घर छोड़ कर जरूर भागना होगा।
शुक्लचन्द्र--यह तो मुझ का भी दिखाई दे रहा है। स्त्री-ऐसी दशा मे मैं आप से एक वचन लेना चाहती हूं। शुक्लचन्द्र-वह क्या ?
स्त्री-या तो आप इस विवाह को जैसे भी हो अवश्य कर ले, अथवा यदि आपको घर छोड़ कर भागना ही पड़े तो आप और कहीं न जाकर सीधे मेरे घर सरगोधा आवे। मेरा विश्वास है कि मैं आपके जीवन को व्यवस्थित करने में आपको विशेष सहायता दे सकूगो।