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पदवी दान महोत्सव
३१३ वेदा हारोत्तिय सगुणोघं णवरं संद थी खबगे । किएह दुग-सुहतिलेसिय वामेवि णं तित्थयरसत्तं ॥
गोम्मट सार कर्मकांड गाथा ३५४ वेद से श्राहार तक की मार्गणाश्रो में स्वगुणस्थान की सत्ता है। विशेषता इतनी ही है कि क्षपक श्रेणी में चढ़ने वाले नपुसक, स्त्री तथा पांच लेश्या वाले मिथ्यात्वी को सत्व में तीर्थंकर प्रकृति होती है।
इसका अभिप्राय यह स्पष्ट है कि स्त्री क्षपक श्रेणी में चढ़ती है किन्तु तीर्थकर बनना अधूरा है। यह स्पष्ट है कि क्षपक श्रेणी पर चढ़ने वाला केवल ज्ञानी बन सकता है। और वह केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त करेगा। फिर भले ही वह स्त्री हो, नपुंसक हो, चाहे पुरुष हो
गोम्मटसार कर्मकाण्ड मे गुणस्थान क्रम से कर्म प्रकृतियों की व्युच्छिति का क्रम यह बतलाया गया है। देसे तदिय कसाया, तिरिया उज्जोय णीच तिरिय गदी। छट्ट बाहरदुग्गं, थीणतिगं उदय वोच्छिण्णा ॥२६७॥ अपमत्ते सम्मत्तं, अंतिम तिय संहदीयऽपुम्मि । छच्चेव णोकसाया, अणिट्टिय भाग भागेसु ॥२६८॥ वेदतिय कोह माणं, मायां संजलणमेव ॥२६६।।
पांचवे गुणस्थन में प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, तिम्रञ्च आयु, उद्योत, नीच गोत्र तथा तिर्यन्च गति का तथा छठे गुण स्थान में आहारक शरीरद्विक, तथा तीनों निद्रा प्रकृतियों का उदयव्युच्छेद हो जाता है ॥२६७॥