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पदवी दान महोत्सव
३१५ वीसा नपुसकवेया, इत्थीवेया य हुंति चालीसा । पुवेदा अडयाला, सिद्धा इक्कम्मि समयम्मि ।
एक समय में एक साथ २० नपुंसक, ४० स्त्री तथा ४८ पुरुष सिद्ध होते हैं। __इन सब बातों से सिद्ध है कि दिगम्बर शास्त्र स्त्री मुक्ति के पक्ष में हैं। __इसके अतिरिक्त उमा स्वामी ने तत्वार्थ सूत्र मे सिद्धों के निम्नलिखित भेद किये हैं
क्षेत्रकालगतिलिङ्गतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितज्ञानावगाहनान्तरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः।
तत्वार्थ सूत्र, अध्याय १०, सूत्र ७ । सिद्धों में परस्पर कोई भेद न होते हुए भी उनके पूर्व मनुष्य रूप की अपेक्षा उनको क्षेत्र, काल, गति, लिङ्ग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येक बुद्ध बोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या तथा अल्पबहुत्व के भेद से विभाजित किया जा सकता है ।
यदि अकेले पुरुष ही सिद्ध होते तो यहां लिङ्ग की दृष्टि से उनका भेद करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
इस प्रकार पूज्य श्री ने यह सब प्रमाण माधव मुनि के लिये लिखवा कर पानीपत भिजवा दिये।
इस प्रकार सात आठ वर्ष तक संघ का कार्य निर्विघ्न चलता रहा। किन्तु पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे। वह समझ गए थे कि उनका रोग स्थायी है और उसके अच्छा होने की आशा नहीं है। अतएव वह अपने सिर से संघ के उत्तरदायित्व को कुछ कम करके उसको अपने शिष्य