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.. मुनि शुक्लचन्द्र जी की दीक्षा “एगे अहंमसि, न मे अत्थि कोइ
न याहमवि कस्स वि।" एवं से 'एगागिणमेव
अप्पाणं समभिजाणेज्जा। आचारांग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, अध्ययन ८, उद्देशक ६ । "मैं अकेला हूं। मेरा कोई नहीं है और न मैं ही किसी का हूं।" इस प्रकार मुनि अपने को अकेला ही समझे ।
___ . पडित मुनि श्री शुक्लचन्द्र जी महाराज का गृहस्थ जीवन का निवास स्थान जिला गुड़गांवा का एक दड़ौली नामक ग्राम था। यह ग्राम तहसील रिवाड़ी में रिवाड़ी नगर से लगभग बारह मील की दूरी पर है। आपके गृहस्थ जीवन के पिता पडित बलदेव शर्मा जाति से गौड़ ब्राह्मण थे। यद्यपि वह जाति से गौड़ ब्राह्मण थे, किन्तु वह यजमान वृत्ति न करके व्यापार द्वारा ही अपने परिवार का पालन पोषण किया करते थे। वैसे आपके पास गांव मे खेती योग्य भूमि भी इतनी थी कि उससे परिवार का कार्य संतोष-जनक रूप से चल जाया करता था। किन्तु आपने