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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी व्यापार के म्वाभाविक नियम के अनुसार बाहर जाकर व्यापार करने का निश्चय किया। कुछ दिनों बाद आप अहमदावाद जा पहुचे । वहा आपने कटपीस का काम करना प्रारम्भ किया। जब आपका काम अहमदाबाद में अच्छी तरह जम गया तो वहाँ आपने अपनी धर्मपत्नो श्रामता महताब कु वर को भी बुला लिया ।
पंडित बलदेव शर्मा जी अहमदाबाद मे अपना कटपीस का व्यापार शांतिपूर्वक करते थे कि उनकी धर्मपत्नी को गर्भ रहा । क्रमश गर्भ पुष्ट होता रहा और दसवे महीने में उन्होंने विक्रम मवत् १६५२ भादों शुक्ल द्वादशी शनिवार को एक अत्यन्त होनहार वालक को जन्म दिया। ग्यारहवें दिन बालक का नाम करण सस्कार करके उसका नाम भोजराज रखा गया। ____बालक के जन्म के पश्चात् घरवालों की भी खबर आने लगी कि आप आ जाये । माता पिता को भी अपनी जन्म भूमि की याद सताने लगी। अस्तु वह अहमदाबाद को कटपीस का व्यापार छोड़कर अपने गाव दडौली आ गएँ । यहां वालक को भोजराज न कह कर भवानीशकर नाम से बुलाते थे। . .. ___ अब बालक शुक्लचन्द्र द्वितीया के चन्द्रमा के समान दिन प्रति दिन बढ़ने लगा और - उसकी माता उसकी बाल लीलाओं को देखकर अत्यधिक प्रसन्न रहने लगी। :
· गांव मे जब बालक की आयु सात वर्ष की हुई तो उसका गांव मे ही अक्षरारम्भ कराया गया। अध्यापक का नाम पं० भवानी शंकर होने के कारण वालक का नाम शुक्लचन्द्र रख दिया गया । क्रमशः बालक की पढ़ाई आगे चली और उसका सम्पर्क अन्य गांव के अनेक बालकों के साथ भी हो गया । दड़ौली