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पदवी दान महोत्सव ___ "भगवन् ! मैं तो आपका एक क्षुद्र शिष्य मात्र हूँ। मैं इतने महत्वपूर्ण परामर्श देने का आप अनुभवी पुरुषों के सामने क्या अधिकार रखता हूँ।" । इस पर पूज्य श्री ने मुनि उदयचन्दजी से कहा।
"बात यह है कि युवाचाय पद संघर्ष का कारण बन सकता है, जिसे मैं टालना चाहता हू । यह बतलाओ कि इस विषय मे सब का एक मत किस प्रकार प्राप्त किया जावे।"
इस पर मुनि श्री उदयचंद जी ने उत्तर दिया। ___ "सब की सम्मति लेने से यह काम नही होगा। आप हमारे मान्य प्राचार्य है। आप जो भी करेगे, हम सब को वही स्वीकार होगा। मेरे विचार में इस विपय मे सब मुनियों के हस्ताक्षर ले लेने चाहिये। किन्तु पदवी प्रदान करने का सव अधिकार आपको अपने हाथ मे रखना चाहिये। आप अपनी ओर से जो कुछ भी करेगे, उसमे किसी को भी आपत्ति न होगी।"
पूज्य श्री ने मुनि उदयचंद जी की इस सम्मति के अनुसार सभी मुनिराजों के हस्ताक्षर ले लिये। सभी ने प्रसन्नता से सारी सत्ता पूज्य श्री के हाथ मे अर्पण कर दी। इस प्रकार पंजाब के श्रमण संघ ने अनुशासन का एक महान् एवं भव्य आदर्श उपस्थित किया।
पदवी प्रदान महोत्सव के लिये फाल्गुण शुक्ल छट विक्रम संवत् १६६६ का दिन निश्चित किया गया। इस अवसर पर जमादार की बड़ी हवेली के अन्दर मुनियों, आर्यिकाओं, श्रावकों तथा श्राविकाओं ने बड़े बड़े विद्वान् तथा तपस्वी मुनि