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कारण उनम
स्त्री और नपुसकर मोक्ष भो प्राप्त
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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी सात अप्रमत्त गुण स्थान में सम्यक्त्व प्रकृति और अन्त के तीन मंहनन का, पाठवें अपूर्व करण गुणस्थान में हास्यादि के कपायो का ॥२६७॥ तथा नौवें अनिवृत्ति करण गुणस्थान मे तीनों बेद तथा सज्वलन क्रोध, मान और माया इन तीन कपायों का उदय विच्छेद हो जाता है।
इसका अभिप्राय यह हुआ कि पुरुप वेद, स्त्री वेद और नपुसक वेट इन तीनों का नौवे गुणस्थान में उदय विच्छंद हो जाता है । वाद के गुणस्थानों मे उनको अपने अपने वेद कपाय का उदय नहीं होता। नाम कर्म का उदय विद्यमान होने के कारण उनमे शरीर की रचनामात्र रहती है और वह अवेदी माने जाते है । पुरुप, स्त्री और नपुसक यह तीनों क्षपक श्रेणी बांधते हैं, तेरहवे गुणस्थान में पहुंचते हैं और मोक्ष भो प्राप्त करते हैं। ___धवल ग्रन्थ मे आचार्य भूत बली तथा पुष्पदन्त कहते हैं। वेदानुवादेण इत्थिवेदएसु पमत्तसजद पहुडि जाव अणिअट्टि बादरसांपराइय पविह उपसमा खवा दव्वपमाणेण केवडिया? संखेज्जा ।। षट्खंडागम जीवस्थान, द्रव्यप्रमाणानुगम धवला टीका
मुद्रित पुस्तक ३री, सूत्र १२६, पृष्ट ४१६ स्त्रियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्ति बादर सांपराय प्रविष्ट उपशमक और क्षपक गुणस्थान तक जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात है। ।
आगे इसी पाठ मे लिखा है कि १०८ पुरुष, २० स्त्री और १० नपुंसक क्षपक श्रेणी करते हैं और मोक्ष में जाते हैं। आगे एक और पाठ में लिखा है कि