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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी श्वेताम्बर आगमों मे जो जिनकल्पी का विधान किया गया है वह उनको कम से कम ग्यारह अंग का पूर्ण तथा वारहवें अग में दशवे पूर्व की तीसरी वस्तु तक का पूर्ण ज्ञान तथा प्रथम संहनन होना आवश्यक है। अस्तु आजकल के दिगम्बर जैन मुनियों को जिनकल्पी नहीं कहा जा सकता। दिगम्बर आचार्य जिन सेन कृत आदि पुराण के सर्ग ११, श्लोक ७३ में भी । साधुओं के जिन कल्पी तथा स्यविर कल्पी दो भेद मानकर जिन कल्पी मे ज्ञान की विशेषता को माना गया है।।
इसके अतिरिक्त दिगम्बर साधुओं के लिये कमण्डलु, पुस्तक, कलस, दवात, काग़ज़, रूमाल, पट्टी आदि रखना भी अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त दिगम्बर मुनि सर्दियों मे घास के अन्दर दुबक कर सोते है। घास मे तो जीवजन्तुओं की संभाल भी नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा उन जीवो की हिंसा होना अनिवार्य है।
फिर दिगम्बर शास्त्रों मे दिगम्बर मुनि को नवम गुणस्थान तक पुरुष, स्त्री तथा नपु सक इन तीनों वेद का उदय माना है । अतएव उसको प्रयोग से दवा कर जितेन्द्रिय वनना पड़ता है।
इस प्रकार के अन्य भी अनेक दिगम्बर ग्रन्थों मे मुनियों के वस्त्रों के पक्ष में लिखा हुआ मिल सकता है !
स्त्री मुक्ति गोम्मटसार की गाथा ३८८ तथा ७१४ आदि कई स्थानों मे स्त्री के लिये क्षपक श्रेणी तथा अवेदिपन आदि का उल्लेख किया गया है। गोम्मटसार कर्म कांड मे कहा गया है