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स्थायी निवास
३०५ को यह सम्मान पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज ने भी प्रदान किया था। अब आपके हाथ पैर कापने लगे है। अस्तु आपको अब उनके दिखलाए हुए मार्ग को ग्रहण करना चाहिये।"
इस पर पूज्य महाराज ने उत्तर दिया
'आप लोगो ने जो कुछ भी कहा है वह ठीक है। किन्तु अभी हमारी आयु कुल छप्पन वर्ष की है। वृद्धावस्था निश्चय से आ गई है। किन्तु यह शरीर तो भाड़े का टट्ट है। हम उसकी साज सम्हाल क्यों रक्खे ? हमारा विचार अपने भरसक विहार करते रहने का ही है।"
इस पर श्रावक लोग बोले
"पूज्य महाराज को उत्तर देने का साहस तो हम मे नहीं है, किन्तु आप एक सम्प्रदाय के प्रधान आचार्य है। फिर आपके कारण धर्म प्रचार भी कम नहीं होता। अतएव समाज का हित इसी बात मे है कि उसके ऊपर आपकी छत्र छाया अधिक से अधिक समय तक बनी रहे। अस्तु हम लोगों ने यह निश्चय कर लिया है कि हम यहां से आगे महाराज को विहार न करने देगे। और यदि महाराज यहां से आगे बिहार करेंगे तो हम मागे में सत्याग्रह करेंगे।"
पूज्य महाराज ने कहा
"श्रावकों को इस प्रकार हमको अपना निश्चय बदलने को वाध्य नहीं करना चाहिये। अच्छा, अभी तो हम आराम करेगे । इस विषय पर कल देखा जावगा।"
पूज्य महाराज से इस प्रकार उत्तर पाकर श्रावक लोग जंडियाला में ही ठहर गए। किन्तु प्रातःकाल होने पर पूज्य श्री ने श्रावकों से वातालाप किये बिना ही विहार कर दिया।