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स्थायी निवास
नो निराहवेज्ज पीरियं । आचारांग सूत्र, श्रुत स्कंध १, अध्ययन ५, उद्देश्य ३ । अपने सामर्थ्य का अपलाप मत करो।
पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज नाभा में शास्त्रार्थ के लिये मुनि श्री उदयचन्द जी को नियुक्त करके वहां से विहार कर पटियाला, अम्बाला, खरड़, रोपड़, बलाचौर, तथा वंगा मे धर्म प्रचार करते हुए फगवाड़ा पधारे। यहां जालंधर के श्री संघ ने लाला रलाराम जी मैजिस्टट आदि के साथ आकर अपने यहां चातुर्मास करने की विनती की। पूज्य श्री ने उनके आग्रह को देखकर उसे स्वीकार कर लिया । अतएव आप वहां से होशियारपुर होते हुए प्रथम जालन्धर छावनी और उसके बाद जालन्धर नगर पधारे । इस प्रकार आपका संवत् १६६१ का चातुर्मास जालन्धर में ही हुआ।
चातुर्मास के बाद आप कपूरथला पधारे। वहां आप से लाला नत्थू शाह तथा लाला बनारसीदास जैन रईस ने विनती की कि चुन्नीलाल वैरागी को दीक्षा कपूरथले में ही दी जावे। आपके स्वीकार कर लेने पर कपूरथले के भाइयों ने अत्यन्त समारोहपूर्पक उसका दीक्षा महोत्सव किया। वैरागी चुन्नीलाल