________________
३६
पदवी दान महोत्सव
पढम नगणं तो दया, एवं चिट्ठइ सव्वसंजए। अन्नाणी किं काही ? किंवा नाही य सेयणवगं ॥
, दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन ४, गाथा १० ॥ 'प्रथमा, ज्ञान है, पीछे दया । इसी क्रम पर समग्र त्यागीवर्ग अपनी संयम यात्रा के लिये ठहरा हुश्रा है । भना, अज्ञानी ममुष्म क्या करेगा? श्रेयस् और अश्रेयस् को या पुण्य एवं पापा को वह कैसे जान सकेगा ?
पूज्य श्री सोहनलाल जी महागज जब रोग के कारण स्थायी रूप से अमृतसर में विराज गए तो संघ की बाह्य व्यवस्था का कार्य भिन्न भिन्न स्थविर मुनियों को सौंप दिया गया। इन मुनियों में ज्ञानी मुनि श्री मयाराम जी महाराज, आगम तत्ववेत्ता श्री
आत्माराम जी महाराज, शास्त्रार्थ विशेषज्ञ मुनि उदयचन्द जी महाराज तथा युवक मुनि श्री काशीराम जी महाराज प्रमुख थे। संवत १९६५ मे पसरूर के श्रावकों ने पूज्य श्री की सेवा में
आकर निवेदन किया कि श्री मुनि काशीराम जी महाराज पसरूर निवासी होने पर भी दीक्षा के बाद वहां नहीं गए हैं। अस्तु पूज्य महाराज ने मुनि काशीराम जी को वहां भेज दिया। इसी सम्बन्ध