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शास्त्रार्थ नाभा .
३०१ "हस्ते पात्रं दधानाश्च तुण्डे वस्त्रस्य धारकाः । मलिनान्येव वस्त्राणि धारयन्तोऽल्पभाषिणः॥"
शिवपुराण ज्ञान सहिता. 'अध्ययन २१, श्लोक २५ । हाथ में पात्र, धारण काने वाले, मुख पर मुखपत्ति पहिनने वाले, मलिन बस्त्रो को धारण किये हुए थोडा बोलने वाले (जैन साधु होते हैं।)
सावचूरि यति दिनचर्या संबेगियों का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। उसमे लिखा है कि
"वत्तीसंगुल दीहं रयहरणं, पुत्तियाय श्रद्धणं । जीवाण रक्खणट्टा 'लिगट्ठा' चेप एयतु ।।" बत्तीस अगुल लम्बा रजोहरण और उसमे अद्ध (सोलह अंगुल) मुख वस्त्रिका यह जीवो की रक्षा के लिये तथा 'पहिचान' के लिये भी रक्खे जाते हैं।
संवेगियों के आधुनिक ग्रन्थों में तो इसके अनेक प्रमाण मौजूद हैं, किन्तु यह मुखवत्रिका को मुख पर न बांध कर उसे हाथ मे रखते है।
महाराज हीरासिंह जी-कहिये बल्लभ विजय जी! क्या आप इन प्रमाणों को मानने से इंकार करते है ?
इस पर बल्लभ विजय जी चुप हो गए और महाराज नाभिने शास्त्रार्थ मे विजय प्राप्त करने का परवाना लिख कर मुनि उदयचन्द जी को दे दिया। इस पर बल्लभ विजय जी ने बहुत असंतोष प्रकट किया । सरकारी घोषणा मे कहा गया था कि
"श्री उदयचन्द जी महाराज का पक्ष , पुरानी परम्परा के अनुसार है। हमारी सम्मति मे जो बेष और चिह्न जैनियों के