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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी ___"पडिग्गहो पायवन्धन पाय केसरिया पायठवणंच पडिलाइं तिन्निर रयताणं गोच्छारो तिन्निए पक्छगा रोहरणं चोलपट्टक पायपूछणं मुहणंतक मादियं एवं पिय संजमस्स उववूह गठयाए वाय दंस मसग सीय परिरखणठयाए इति ।"
प्रश्न व्याकरणांग, अध्ययन १० ___पात्र, पात्र यांधने की झोली, पान पोंछने का घस्त्र, आहार करते समय पात्रों के नीचे बिछाने का वस्त्र, तीन वस्त्र पात्रों के-एक ऐमा वस्त्र जो सभी पात्रों पर पा जावे, जिससे पानों में धूल न पड़े, लूहने तीन, प्रच्छादिका अर्थात् दांचादर सूती और एक लोई ऊनी या तीनों सूती, रजोहरण, चोलपट, श्रासन, मुखवस्त्रिका तथा पात्र जिसमें शोध के समय जल ले जाया जावे इत्यादि वस्तुएं संयम वृद्धि और सर्दी गरमी, डांस तथा मच्छर श्रादि से रक्षा के लिये ही है।
वल्लभ विजय जी के दादा गुरु बूटे रायजी ने अपने वनाये 'मुखपत्तिचर्चा' के पृष्ठ १४५ पर 'महानिशीथ सूत्र के निम्नलिखित पाठ का अवतरण दिया है"करणेट्टियाए वा मुहणंतगेण वा विणा डरियं
पडिकम्मे मिच्छुक्कडं पुटिमड्दं ।"
महानिशीथ सूत्र, अध्ययन सात । - मुखपत्ति में जो धागा पढा हुया है उसको कानो में बिना डाले यदि ध्यान करे तो दोपहर का दण्ड, मय 'मिच्छामि दुकड' के श्रावे ।
सनातन धर्मियों के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'शिव पुराण' मे भी मुखपत्ति वांधने का वर्णन है--