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आचार्य पद .
२८९ अमृतसर, नारोवाल तथा पसरूर में धर्म प्रचार करते हुए स्यालकोट पधारे।
स्यालकोट मे ही आपने संवत् १६५४ का अपना चातुर्मास किया। चातुर्मास के बाद आप वहां से विहार करके जम्मू , पसरूर, गुजरानवाला, लाहौर, कसूर तथा पट्टी मे धर्म प्रचार करते हुए अमृतसर पधारे। यहां आपने अपना संवत् १६५५ का चातुर्मास किया।
अमृतसर से विहार करके आप जंडियाला, कपूरथला, जालंधर, फगवाड़ा, वंगा, नवा शहर, बलाचौर, रोपड़, खरड, बनूड मे धर्म प्रचार करते हुए अम्बाले पधारे। यहां आपने फाल्गुण बदि पन मी संवत् १६५५ को तीन वैरागियों को दीक्षा दी, जिनके नाम यह है
बीरबल, दौलतराम तथा, रामचन्द्र ।
वहां से विहार करके आप उगाला तथा मूलाना में धर्म प्रचार करते हुए संडौरा आए। यहां आपने चैत्र शुक्ला द्वितीया संवत् १६५६ को कुन्दनलाल जैन अग्रवाल नामक एक बैरागी को दीक्षा दी।
आप संडौरा से विहार करके उगाला, शाहाबाद, थानेसर, जींद, नगूरा, बड़ोदा, टुहाण, मोणक, सनाम, संगरूर तथा धूरी मे धर्म प्रचार करते हुए नाभा पधारे। यहां आप को पटियाला के श्री संघ की अाग्रहपूर्ण विनती प्राप्त हुई। आप उसको स्वीकार कर समाना होते हुए पटियाला पधारे। इस प्रकार आपका संवत् १६५६ का चातुमोस पटियाला मे हुआ।
पटियाला के चातुर्मास के बाद आप नाभा, मालेरकोटला, गूजरवाल, छाड़, महोली, लुधियाना, फलोर, नकोदर, शाहकोट, सुलतानपुर लीधी तथा कपूरथला में धर्म प्रचार करते हुए जालंधर पधारे। यहां आपने होशियारपुर के श्री संघ की