________________
, श्राचार्य पद
२६१ वदना करना बहुत बुरा लगा। उसने प्रथम तो अताउल्ला को बुला कर युवाचार्य महाराज की निन्दा करते हुए उसे इस्लाम से विमुख होकर मुरतिद बन जाने पर बहुत कुछ कठोर शब्द कहे, किन्तु जब अताउल्ला ने उसको युक्तिपूर्वक उत्तर दिया तो वह युवाचार्य महाराज के पास शास्त्रार्थ करने आया। महाराज का उसके साथ निम्नलिखित वातोलाप हुआ। ___कसाई-मैने सुना है कि जैनी लोग परमात्मा को सृष्टिकर्ता नहीं मानते।
युवाचार्य-हां, यह ठीक है। कसाई-तो सृष्टि को किसने बनाया ?
सुवाचार्य-सृष्टि को किसी ने भी नहीं बनाया। यह अनादि काल से इसी प्रकार चली आती है। कभी कभी कालक्रम से किसी किसी भाग में अपने आप भयंकर विनाश हो जाता है तो अज्ञानी लोग उसे प्रलय तथा वहां फिर जीवों की उत्पत्ति को सृष्टि को उत्पत्ति कहते हैं। किन्तु वास्तव में यह विश्व इतना बड़ा तथा निसीम है कि यहां ऐसी ऐसी घटनाओं को कुछ भी महत्व नहीं दिया जा सकता। फिर ईश्वर के साथ तो उसका कोई भी सम्बन्ध नहीं । यदि तुम ईश्वर को सृष्टिकर्ता मानोगे तो ईश्वर का कर्ता किसको मानोगे ? फिर उसका - कर्ता किसको मानोगे। इस प्रकार अनवस्था दोष आ जावेगा। फिर ईश्वर को सृष्टिकर्ता मानकर आप उसको गाली भी
कसाई-वह किस प्रकार
युवाचार्य जी-बात यह है कि तुम्हारे मतानुसार ईश्वर पापी तथा धर्मात्मा सभी को बनाता है। चोर, उठाईगीरों, लुच्चों, व्यभिचारियों और डाकुओं को भी वही बनाता है।