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अादर्श करुणा एगे आयाणुकंपाए नो पराणुकंपाए,
एगे पराणुकंपाए नो आयाणुकंपाए । एगे आयाणुकंपाए वि पराणुकंपाए वि, एगे नो आयाणुकंपाए नो पराणुकंपाए ।
ठाणांग सूत्र, चतुर्थे ठाणा भगवान् महावीर स्वामी ने ठाणांग सूत्र के उपरोक्त वाक्य में चार प्रकार के मनुष्य बतलाए हैं। एक मनुष्य ऐसे होते हैं जो अपनी अनुकम्पा तो करते हैं, किन्तु दूसरे की अनुकम्पा नहीं करते। उनमे प्रत्येक बुद्ध, जिनकल्पी तथा निर्दयी व्यक्तियों का अन्तर्भाव किया जाता है। दूसरे वह होते हैं जो अपनी अनुकम्पा तो नहीं करते, किन्तु दूसरे की अनुकम्पा अवश्य करते हैं। उनमें तीर्थंकरों तथा मेतार्य जैसे महान् परमार्थी मुनीश्वरो का अन्तर्भाव किया जाता है। तीसरे वह होते हैं जो अपनी तथा दूसरे दोनों की अनुकम्पा किया करते हैं। इनमें स्थविरकल्पी मुनिवरों की गणना की जाती है। चौथे वह होते हैं जो अपनो तथा पराई दोनों की ही अनुकम्पा नहीं करते। इनमें श्रभव्य प्राणियों का समावेश किया जाता है।
उपरोक्त उद्धरण से यह सिद्ध होता है कि जिस आत्मा में अनुकम्पा नहीं, वह कभी भी आत्म कल्याण नहीं कर सकता।