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"प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी
२२७ के पास दीक्षा ली। किन्तु बाद में उनकी श्रद्धा बिगड़ गई और उन्होंने मुख पट्टी उतार कर अपने को साधु कहलाना बन्द कर दिया । तो भी वह अपने को तपा गच्छ का मानते थे। .. श्रात्माराम जी के लिखे हुए यह ग्यारह प्रश्न इतने अशुद्ध "थे कि उनसे उनका लेखक के रूप में भाषा पर अधिकार भी " सिद्ध नहीं होता, फिर आगम ग्रन्थों पर तो ऐसे व्यक्ति का __ अधिकार किस प्रकार हो सकता है और किस प्रकार उसके हा द्वारा किये हुए प्रश्न तर्कसंगत हो सकते हैं ?
बूटेराय ने आत्माराम जी के इन प्रश्नों का उत्तर भी नहीं दिया। क्योंकि न तो बूटेराय जी कोई विद्वान ही थे, न उन्होंने कोई सूक्ष्म ज्ञान ही सीखा था। में इस प्रकार आत्माराम जी इधर उधर शास्त्रविरोधी कथन
करते फिरते थे, किन्तु उनको पूज्य श्री अमरचन्द जी महाराज " के सामने पड़ने का साहस नहीं था।
संवत् १९२४ में दिल्ली निवासी लाला जीतमल जी ने ॥ आत्माराम जी से निम्नलिखित प्रश्न किये
"महात्मा जी ! सूत्रों में दो प्रकार के धर्म का प्रतिपादन { किया गया है-मुनि धर्म तथा गृहस्थ धर्म का । सो प्रतिमा जी १ का पूजन किस सूत्र में बतलाया गया है ? फिर जैन मंदिर
बनाने अथवा जिन प्रतिमा के वनाने अथवा उसकी प्रतिष्ठा | करने की विधि का वर्णन कौन सूत्र में है ? ___ "फिर जीव को अजीव मानना तथा अजीव को जीव मानना मिथ्यात्व है या नहीं ? अजीव मे जीव संज्ञा मानना तथा जीव को अजीव मानना मिथ्यात्व है या नहीं ? फिर गौतम स्वामी ने भगवान से किस सूत्र में यह प्रश्न किया