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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी करते हुए दिल्ली पधारे। वहाँ से आपने पंजाब की ओर प्रस्थान किया। अब आप जींद, कैथल' समाना, पटियाला तथा नाभा
आदि क्षेत्रों में धर्म प्रचार करते हुए मालेरकोटला पहुंचे। मालेरकोटला वाले आपसे बहुत समय से चातुर्मास की विनती कर रहे थे। अतएव संवत् १६४२ का चातुर्मास आपने मालेरकोटला में किया।
मालेरकोटला के चातुर्मास में आपका प्रभाव वहां के राज्य कर्मचारियों पर बहुत अच्छा पड़ा। आपके उपदेश के प्रभाव से मालेरकोटला राज्य भर में हिरण आदि का शिकार खेलना बन्द कर दिया गया।
मालेरकोटला का क्षेत्र पंजाब प्रांत में जैनपुरी के नाम से विख्यात था। उस समय वहां एक सहस्र से अधिक जैनियों के घर थे।
मालेरकोटला के चातुर्मास के बाद आप वहां से विहार करके रामपुरा होते हुए पूज्य महाराज आचार्य मोतीराम जी के दर्शन करने लुधियाना पधारे। इस अवसर पर आपने उनको अपनी व्यावर तक की उस यात्रा का वृत्तांत सुनाया, जो आपको आत्माराम संवेगी का पीछा करते हुए करनी पड़ी थी। यात्रा का सब वृत्तांत सुन कर पूज्य मोतीराम जी महाराज बहुत प्रसन्न हुए।
लुधियाने से विहार करके आपने फगवाड़ा, होशियारपुर, जालंधर छावनी, जालंधर नगर, कपूरथला तथा जंडियाला में धर्म प्रचार करते हुए अमृतसर में पदार्पण किया। अमृतसर की जनता आपके उपदेश से बहुत प्रसन्न हुइ। वहां से विहार