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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अमृतसर वाले आपसे चातुर्मास के लिये बहुत समय से विनती कर रहे थे। अतएव आपने अपना संवत् १६४८ का चातुर्मास अमृतसर में ही किया। इस समय संबेगी आत्माराम जी भी अमृतसर मे ही थे। किन्तु पूज्य श्री के बार-बार शास्त्रार्थ का संदेश भेजने पर भी आत्माराम जी को आपका सामना करने का साहस नहीं हुआ। तो भी इस समय दोनों ओर से कई एक विज्ञापन निकले। जव जव मुनि श्री सोहनलाल जी चर्चा के लिये तयार हुए तो आत्माराम जी अमृतसर से चल पड़े।
मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज अमृतसर से विहार करके जडियाला, जालंधर, फगवाड़ा और बंगा में धर्म प्रचार करते हुए जैजो (पथरांवाली) पधारे । यहां आपने संवेगियों को फिर पराजित किया ।
आप जैजों से विहार करके होशियारपुर आए तो वहां भी आपसे प्रश्नोत्तर हुए किन्तु आत्माराम जी सूत्रों से मूर्ति पूजन सिद्ध नहीं कर सके। इस समय होशियारपुर मे लाला बूटेराम जी, लाला चौकसमल तथा कृपाराम जी चौधरी प्रसिद्ध संगी थे। जब उन्होंने देखा कि श्री आत्माराम जी प्रतिमा पूजन को सूत्रों द्वारा सिद्ध नहीं कर सके तो उन्होंने इस विषय का मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज के साथ अच्छी तरह निर्णय करके उनसे ही सम्यक्त्व धारण किया। अब उन्होंने तपागच्छ को सूत्रों के विरुद्ध जान कर त्याग दिया।
होशियारपुर में ही आपने माघ कृष्ण पञ्चमी को अमृतसर निवासी ओसवाल जैन श्री विनयचन्द जी तत्तड़ वैरागी को दीक्षा दी। उसके साथ आपने कर्मचन्द जी रोड़वंशी तथा विनयचन्द जी की माता लक्ष्मीदेवी को भी दीक्षा दी। श्राप