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मुसलमान को सम्यक्त्व धारण कराना
२८५ अताउल्लाह के यह कहने पर सब मुसलमानों ने उसका समर्थन किया और वह सब के सब उपाश्रय को चले।
उपाश्रय में आने पर मौलवी अताउल्ला ने युवाचार्य महाराज से भी वही प्रश्न किया
अताउल्ला-क्या आप दा को मानते हैं ?
युवाचार्य जी--खुदा, गाड, सिद्ध, परमात्मा तथा ईश्वर यह सब एक दूसरे का अर्थ ही बतलाते हैं। वास्तव में उनमे कोई अन्तर नहीं है। जिसको मुसलमान खुदा कहते हैं उसी को सनातनी हिन्दू ईश्वर कहते हैं, ईसाई उसी को गाड कहते है
और जैनी भी उसी को सिद्ध कहते हैं। किन्तु जैनी लोग इस बात को नहीं मानते कि 'उसकी मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता।"
अताउल्ला-क्यों इस बात को मानने से क्या नुकसान है ?
युवाचार्य जी-इसको मानने का अर्थ यह हुआ कि संसार के जहां सब अच्छे काम खुदा की मर्जी से होते हैं। वहां चोरी, व्यभिचार, हत्या, चोर बाजारी, जुवा खेलना आदि सब बुरे कार्य भी उसी की मर्जी से होते हैं। यदि आप ईश्वर की मर्जी अच्छे और बुरे दोनों कामों में मानोगे तो आप यह नहीं कह सकते कि अमुक व्यक्ति को बुरे काम का बुरा फल मिला। दूसरे शब्दों में इस सिद्धान्त को मानने से ईश्वर ठीक इस प्रकार का बन जाता है कि
"चोर से तो कहे चोरी कर और साध से कहे कि जागते रहना ।" अर्थात् इस सिद्धान्त को मानने से ईश्वर अत्यन्त कपटी तथा धोखेबाज सिद्ध होता है। दूसरे शब्दों में ईश्वर को श्राप संसार के कामों का कर्ता मान कर गाली देते है।