________________
प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी
नए नए व्यक्तियों को मुसलमान बना कर अपनी गतिशीलता का परिचय देते रहते हैं, जबकि जैनी लोग नए व्यक्तियों को अपने धर्म में दीक्षित करने में उत्साह न रखते हुए इस बात का परिचय देते हैं कि जैन धर्म एक गतिहीन धर्म है। यह बात दिगम्बर जैनियों तथा संवेगियों पर पूर्णतया लागू होती है, किन्तु स्थानकवासियों पर आंशिक रूप में लागू हाती है। ___ उन दिनों मालेर कोटला में वाहिर से आए हुए एक मौलवी अनाउल्लाह अपने को इस्लाम का बड़ा भारी प्रचारक मानते थे। उन्होंने अपने धर्म वालों को यह दिखलाने के लिये कि जैन धम एक ईश्वर विरोधी धर्म है-मात्माराम जी के पास जाकर कुछ वार्तालाप किया। मौलवी ने आत्माराम जी से जाकर प्रश्न किया मौलवी-क्या श्राप खुदा को मानते हैं ?
आत्माराम जी-खुदा कोई नहीं है, वह केवल मूखों का भ्रम है।
_
...
__
___ मौलवी अताउल्लाह के साथ अन्य भी कई मुसलमान थे।
आत्माराम जी के इस उत्तर को सुन कर वह लोग एक दम ताली वजा कर उठ खड़े हुए। बाहिर सड़क पर आने पर अताउल्लाह ने अपने साथियों से कहा
"देखा आपने ! मैं ने कैसी जल्दी उनके मुंह से कहलवा लिया कि खुदा कोई चीज नहीं है। भला बताओ तो उन जैनियों से बड़ा दूसरा कौन काफिर हो सकता है ? सुनते हैं यहां जैनियों के एक और लीडर मुनि सोहनलाल ने भी चौमासा किया है। चलो उनके रंग ढंग भी देखे। यकीनन खुदा की हस्ती से वह भी इंकार करेगे।"