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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी
अनुसार इस विषय पर विचार करके नया पञ्चांग बनावे | जब उनका बनाया हुआ पञ्चांग तयार हो जावे तो सभी पर्व तथा चातुर्मास के दिन उसी पञ्चांग के अनुसार मनाए जाया करें ।"
आचार्य महाराज के इस कथन के उपरान्त सभी संघ ने सर्वसम्मति से नवीन जैन पञ्चांग बनाने का कार्य युवाचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज के सुपुर्द कर दिया ।
युदाचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज भी इस कार्य को अपने सिर पर लेकर इस में पूर्ण शान्ती से लग गए, इन्होंने इस विषय की शास्त्रानुसार अत्याधिक छानवीन करके इस विषय में जैन शास्त्रों तथा अजैन ग्रन्थों दोनों का फिर अध्ययन किया । अन्त में इन्होंने बहुत ऊहापोह के बाद पहिले पांच वर्ष का और फिर उसे बढ़ा कर पैंतीस वर्ष का पञ्चांग बनाया । इन्होंने एक ऐसे नियम का आविष्कार किया कि उस नियम की सहायता से कुछ थोड़े परिवर्तन के साथ प्रत्येक पैंतीस पैंतीस वर्ष का पंचांग बन जाता था । इस प्रकार उन्होंने बीते हुए २५०० वर्षों के अतिरिक्त पञ्चम आरे के शेष साढ़े अठारह सहस्त्र वर्ष का पूरा पञ्चांग तैयार कर दिया, इस पञ्चाग में कुछ नियम साधारण थे, जिनके अनुसार पञ्चांग बनता था और कुछ नियम विशेष थे जिनका ध्यान प्रत्येक पैंतीस वर्ष का नया पञ्चांग बनाते समय व्यान रखना पड़ता था ।