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રદ્દ
प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी बले ऊंचा थी पड़ता ने झाल लियो तायो श्रो उपकार संसार तणों छे । संसार तणो उपकार करे छ तिण के निश्चय ही संसार बधे ते जाण।"
ढाल ११ पृष्ठ ५२ "गृहस्थरे लागी लायो घर बारे निकलियों न जाओ।। वलता जीव विल विल बोले, साधु जाय किवाड़ न खोले ॥"
ढाल २ पृष्ठ ५ "गृहस्थ भूलो उजाड़ बन में, अखी ने बल उजड़ जावे।। तिण ने मार्ग बतायने घर पहुंचावे, बल थको हुवो तो कांधे बैठाये, ओ उपकार संसार तणो छ ।”
ढाल ११ पृष्ठ ५३ "साधु थी अनेरो कुपात्र छे।" .
भ्रम विध्वंसन पृष्ठ ७६ मुनि माणिकचन्द-वाह, यह बात आपने खूब कही। स्थानकवासी तथा तेरहपंथी उन्हीं बत्तीस सूत्रों को मानते हैं। हमारा इस विषय मे जो कुछ भी सिद्धान्त है वह सब आगमों के अनुकूल है।
मुनि सोहनलाल-नहीं, आपका सिद्धान्त आगमों के अनुकूल नहीं है।
मुनि माणिकचन्द-इसका कोई प्रमाण आप दे सकते हैं? मुनि सोहनलाल-प्रमाण एक नहीं, अनेक दिये जावेगे। आप ठाणांग सूत्र के चतुर्थ ठाणे को खोल कर देखिये। उसमें आपको निम्नलिखित वाक्य मिलेगा-----