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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी
अब आप वजीरावाद से विहार करके डमका, पसरूर, स्यालकोट, जायके, उसके, गुजरांवाला तथा सेखेकाल में धर्म प्रचार करते हुए लाहौर पधारे।
इस प्रकार आपका १६४६ का चातुर्मास लाहौर में हुआ।
पञ्जाव प्रांत मे लाहोर प्रारम्भ से ही जैन समाज का प्रमुख केन्द्र था। जैन मुनि शान्तिचंद जी ने सम्राट अकबर से बकरीद के अवसर पर लाहौर मे ही हिंसा कांड वन्द करवाया था। उपाध्याय समय सुन्दर जी ने भी लाहौर में ही रह कर 'राजानो ददते सौख्य' इस आठ अक्षर के छोटे से वाक्य के आठ लाख अर्थ किये थे। ___ पृज्य श्री सोहनलाल जी के लाहौर के चातुर्मास में धर्म ध्यान का खूब ठाठ रहा । इस चातुर्मास में आप लक्ष्मणदास नामक एक वैरागी को ज्ञानाभ्यास करा रहे थे। चातुर्मास की समाप्ति पर लाला दुनीचंद ने पूज्य श्री सोहनलाल जी से प्रार्थना की
"वैरागी लक्ष्मणदास को दीक्षा मेरे घर से दी जावे।"
पूज्य श्री के इस प्रार्थना को स्वीकार कर लेने पर दीक्षा महोत्सव की तयारी की जाने लगी। इधर जैनी लोग दीक्षा महोत्सव की नयारी कर रहे थे, उधर धर्मद्रोही विद्रोहियों ने उसमें विघ्न डालना प्रारम्भ किया। किन्तु लाला दुनीचंद हताश होने वाले व्यक्ति नहीं थे। आपने डिप्टी कमिश्नर से मिल कर विरोधियों का कुचक्र असफल कर दिया और दीक्षा के जलूस की स्वीकृति ले ली। फल स्वरूप दीक्षा महोत्सव बड़ी धूम धाम से मनाया गया। उसमे बाहिर की जनता भी बड़ी संख्या में आई थी। दीक्षा का जलूस भजन मंडलियों के साथ