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गणि उदयचन्द जी का सम्पर्क नगर के मुख्य मुख्य बाजारों और चौराहों से होकर निकला और कहीं भी किसी प्रकार का विघ्न नहीं हुआ।
पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज लाहौर के चातुर्मास के बाद वहां से विहार करके अमृतसर, जंडियाला, कपूरथला, जालन्धर, होशियारपुर, फगवाड़ा, बंगा, जैजो, नवाशहर, राहों, वलाचोर, रोपड़, तथा नालागढ़, में धर्म प्रचार करते हुए दुबारा फिर रोंपड़ आए। फिर श्राप वहां से चल कर माछीवाड़ा, समराला तथा खन्ना की जनता को धर्म संदेश देते हुए लुधियाना पधारे। यहां आकर आपने पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज के दर्शन किये।
लुधियाना में आपको समाचार मिला कि आत्माराम जी संबेगी ने विजयानन्द सूरि नाम से पंजाब के मूर्ति पूजक जैनियों में फिर अपना संगठन अच्छा कर लिया है। उसका संवत् १९४७ का चतुर्मास मालेरकोटला मे होने का निश्चय हो गया था। वास्तव मे जब तक पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज जीवित रहे आत्माराम जी की कुछ भी नहीं चलने पाई। किन्तु उनके स्वर्गवास के पश्चात् उन्होंने अपने संगठन को दृढ़ बना लिया। __ मालेरकोटला के स्थानकवासी भाइयों को जब अपने यहां आत्माराम जी को चातुर्मास का समाचार मिला नो वह बहुत घबराए। अब वह सामुहिक रूप में पूज्य आचार्य श्री मोतीराम जी महाराज तथा मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज की सेवा में लुधियाना जाकर उपस्थित हुए। उन्होंने उनसे विनती की कि वह अपना १९४७ का चतुर्मास मालेरकोटला में ही करें।
आपने परिस्थिति पर विचार करके उनकी विनती को स्वीकार कर लिया।