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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अब आप लुधियाना से विहार करके गूजरवाल, रायकोट, वरनाला, सनाम, तथा संगरूर, में धर्मप्रचार करते हुए मालेरकोटला की ओर चले।
इस बीच में आप रामपुर के भाइयों की विनती पूर्ण करने के लिये रामपुर भी पधारे यहां रत्नचन्द नामक एक बैरागी दीक्षा लेना चाहता था, यह महाशय जिला लाहौर के भगियारण नगर के जैन ओसवाल थे, पूज्य सोहनलाल जी महाराज ने उनको मुनि उदयचन्द जी से दीक्षा दिला कर उन्हे आर्थिक चर्चावादी की पदवी भी दी।
इस प्रकार दीक्षा देकर आप मालेरकोटला पधारे। आत्माराम जी की उपस्थिति के कारण मालेरकोटला के इस चातुर्मास को तीव्र संघर्ष का समझा जा रहा था। मुनि सोहनलाल जी के साथ इस चातुर्मास मे मुनि विलासराय जी महाराज स्वयं प्राचार्य महाराज पूज्य मोतीराम जी महाराज, मुनि उदयचन्द जी महाराज तथा नवदीक्षित मुनि श्री लक्ष्मणदास जी थे । आपका चातुर्मास खूब धूमधाम से हुआ। म्थानकवादी तथा संवेगी दोनों ही पक्ष अपने २ सिद्धान्तों का का प्रचार खूब कर रहे थे, अनेक बार शस्त्रार्थ का प्रसंग भी उपस्थित हुआ । किन्तु श्री विजयानचन्द जी के शास्त्रार्थ के लिये तयार न होने से प्रत्यक्ष सघर्स न हो सका। किन्तु प्रत्यक्ष संघर्ष न होने पर भी परोक्ष संघर्ष दैनिक हुआ करता था। श्रावकों के द्वारा शास्त्रचर्चाएं चलती रहती थीं। एक से एक वढ़कर युक्तियों के जाल बिछाए जाते तथा छिन्न भिन्न किये जाया करते थे, मुनि श्री सोहनलाल जी के साथ साथ मुनि उदयचन्द जी भी इस शास्त्रचर्चा मे भाग लिया करते थे। मुनिउदयचन्द के सर्वथा नवीन युक्तिवाद एवं शास्त्रज्ञान को देख