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गणि उदयचन्द जी का सम्पर्क
२६३ करके आप पट्टी, कसूर, लाहौर तथा गुजरानवाला में धर्म प्रचार करते हुए स्यालकोट पधारे। ___ स्यालकोट वाले आपसे बहुत समय से चातुर्मास की प्रार्थना कर रहे थे। अतएव आपने संवत् १६४३ का अपना चातुर्मास स्यालकोट में ही किया । चातुर्मास के अवसर पर यहां बहुत अच्छा धर्म प्रचार रहा। यहां अमृतसर के श्री नत्थूराम जी जैन ओसवाल ने आपसे दीक्षा देने की प्रार्थना की। आपने उसकी पात्रता को देखते हुए उसे श्री गैंडेराय जी का शिष्य बनाया।
स्वालकोट का चातुर्मास समाप्त करके आप जम्मू की ओर पधारे। जम्मू वाले आपसे पधारने का आग्रह बहुत समय से कर रहे थे। आपने उनकी चिनती स्वीकार कर उनको भी अपने धर्मोपदेश का लाभ दिया। आपके व्याख्यान का यहां भारी प्रभाव पड़ा। काश्मीर के महाराज प्रतापसिंह, उनके राज्य कर्मचारियों तथा अनेक जैन अजैन लोगों ने आपके उपदेश का लाभ उठाया। जम्मू से विहार करके श्राप फिर स्यालकोट की
ओर चले । वहां से पसरूर, नारोवाल, कलानौर, अजनाला, मजीठ, अमृतसर, जंडियाला गुरू, सुलतानपुर, कपूरथला, जालंधर, होशियारपुर, जैजो, बंगा, नवाशहर, राहरे, बलाचौर, रोपड़, नालागढ़, पुनः रोपड़, कुराली, खरड़ तथा बनूड़ में धर्म भचार करते हुए आप अम्बाला पधारे। यहां आपको मालेर. कोटला के संघ का चातुर्मास का निमंत्रण मिला। आप इस निमंत्रण को स्वीकार करके राजपुरा पटियाला तथा समाना में धर्म प्रचार करते हुए मालेरकोटला पधारे।
अस्तु आपका संवत् १६४४ का चातुर्मास मालेरकोटला में हुया । इस चौतुमास के बाद आपने यहां से विहार करके