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प्रतिवादी भयंकर मुनि सोहनलाल जी
२२५ आत्माराम जी के शिथिलाचार और. संयम- में कायर ना देखते हुए ही ऐसी शिक्षा दी और श्री जीवनराम, जी महाराज को कहला भेजा था कि आपके लिहाज में आकर मैंने मुनि श्रात्माराम को कुछ पढ़ाया है। किन्तु धर्म का द्वेषी बनेगा ऐसा मेरा अनुमान है। अंतः आगे और अध्ययन कराने का मेरा विचार नहीं है। __आत्माराम जी ने मालेरकोटला में आकर विशनचन्द आदि साधुओं को भी सम्यक्त्व से पतित किया। यद्यपि आत्माराम जी श्रद्धान से गिर चुके थे, किन्तु बाह्य व्यवहार में वह अपने को श्वेताम्बर सम्प्रदाय का ही कहते थे।
आत्माराम जी के इस व्यवहार से मुनि कनीराम जी आदि ने उनको बहुत कुछ शिक्षा दी। तब वह पश्चात्ताप प्रकट करते हुए आचार्य श्री अमरचन्द जी महाराज की सेवा में उपस्थित
हुए। आत्माराम ने आचार्य महाराज की बहुत विनय की। इस ३. पर उन्होंने ऋजुपरिणामी होने के कारण व्याख्यान के समय
आत्माराम जी को ही व्याख्यान करने की आज्ञा दे दी। किन्तु आत्माराम ने अपने इस ब्याख्यान में भी अनेक बातें सूत्रों के विरुद्ध कहीं। - उस समय स्यालकोट से लाला सौदागर मल भी पूज्य महाराज के दर्शनार्थ आए हुए थे। इस व्याख्यान के बाद लाला सौदागर मल तथा पूज्य महाराज ने आत्माराम को अनेक हितकारी शिक्षाएं दीं। श्री महाराज ने आत्माराम से यह भी कहा
"हे शिष्य ! इस मनुष्य जन्म का बार बार मिलना कठिन है। यह आत्मा हिंसा धर्म के कारण इस संसार मे अनादिकाल से परिभ्रमण करता चला पाया है। यदि सूत्र के एक अक्षर