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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी तो सम्यक्त्व में दूषण लगता है। कामदेव श्रावक के रूप को पढ़ कर देखो।
प्रश्न ३-ओघनियुक्ति के प्रमाण से आत्माराम जी ने द्रोपदी जी को विवाह से पूर्व मिथ्यादृष्टि सिद्ध किया है। देखो श्रात्माराम जी के द्वारा किये हुए प्रश्नों मे पांचवा प्रश्न जो उन्होंने संवत् १६२३ मे बूटेराय जी से किये थे। आपके दोनों प्रमाणों में से किसको सत्य माना जावे। आप परस्पर विरोधी कथन करने के दोष से किस प्रकार बच सकते हैं ?
प्रश्न :-मति पजा का उपदेश किस बहन ने किस स्थान पर किया है। तीर्थंकर भाषित सूत्रों में पांच महाव्रतों तथा श्रावक के द्वादश व्रतों का उपदेश पूर्ण विधि से किया गया है, तो उनमे मूर्ति की विधि विधान क्यों नहीं किया गया ?
प्रश्न ५-जव तीर्थकर देव सहस्रों जीवों को दीक्षा देते हैं तथा सहस्रों को ही श्रावक के द्वादश व्रत ग्रहण करवाते है तो मूर्ति की प्रतिष्ठा भी करवाते होंगे, सो किस अर्हन ने मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई और उसका वर्णन किस सूत्र मे किया गया है ? ___ आप कहते हो कि रायप्रसेनी ने सूर्याभ देवता द्वारा देवलोक में जिन प्रतिमा की पूजा किये जाने का वर्णन है। किन्तु जहां स्वर्ग मे जिन प्रतिमा का वर्णन है, वहां भूए प्रतिमा (भूत प्रतिमा) तथा जख प्रतिमा (यक्ष प्रतिमा) का भी वर्णन है। यदि वहां जिन प्रतिमा होती तो उसके साथ गणधर प्रतिमा तथा साधु प्रतिमा भी होनी चाहिये थी, उनके न होने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है वह जिन प्रतिमा जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा न हो कर किसी अन्य देवता की प्रतिमा है।