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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज ने उनको ऐसा करने से कई बार मना किया। किन्तु, उन्होंने अपनी इस आदत को न छोड़ा। अन्त मे कुछ समय के उपरांत मुनि हरिचन्द जी पागल हो गये। किन्तु श्री सोहनलाल जी महाराज ने उनको ठीक कर ही लिया।
जयपुर के चातुर्मास को समाप्त कर आपने वहां से विहार कर दिया। अब आपने, अलवर, दिल्ली, खेकड़ा आदि स्थानों में धर्म प्रचार करते हुए कांधला की ओर प्रस्थान किया। कांधला वाले आपके पास चातुर्मास की विनती लेकर दिल्ली तक आए थे। अतएव आपने विनती को स्वीकार करके संवत् १९४१ का चातुर्मास कांधले में किया। इस समय आपके साथ तीन मुनि और थे
मुनि श्री गैंडेराय जी महाराज, तपस्वी सेवकराम जी के शिष्य मुनि घासीराम जी महाराज तथा मुनि हरिचन्द जी महाराज। आपने कांधले चातुर्मास में नौवतराय वैरागी को श्री गैडेराय जी से दीक्षा दिलवा कर उसका नाम उदयचन्द रक्खा । यही बालमुनि आगे चल कर प्रसिद्ध गणि उदयचन्द जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। ___ बालक नौवतराय का जन्म विक्रम संवत् १९२२ में नाभा राज्य के एक राता नामक ग्राम में एक उच्च गौड़ ब्राह्मण वंश में हुआ था। उनके पिता श्री शिवजीराम एक साधन सम्पन्न श्रेष्ठ ब्राह्मण थे। उनके पास कई मकान तथा सौ बीघे जमीन थी। वह संस्कृत तथा ज्योतिष विद्या के अच्छे विद्वान थे। आपकी पत्नी तथा बालक नौबतराय की माता का नाम सम्पत्तिदेवी था।
बालक नौबतराय को बाल्यावस्था से ही एकांत प्रिय था। साधु-संतों के संग मे उसको विशेष आनन्द आता था।