________________
२५६
प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी रहने का भी अवसर मिला। नौवतराय ने उनके चरणों मे बैठ कर आजन्म ब्रह्मचर्य रखने का नियम ले लिया।
पन्नालाल जी को जव वात मालूम हुई तो उन्होंने उसकी सूचना नौवतराय के पिता के पास राता भेज दी। वह दिल्ली आकर अपने पुत्र को समझा बुझा कर राता ले गये। यहां उनके विवाह की चर्चा भी चली, किन्तु उन्होंने साफ कह दिया कि उसको जन्म भर ब्रह्मचारी रह कर जैन दीक्षा लेनी है। एक सनातन धर्मी ब्राह्मण कुमार और जिन दीक्षा ले। इस समाचार से न केवल सारे परिवार में वरन् आस पास के अनेक नगरों मे हलचल मच गई। किन्तु नौबतराय ने किसी को भी नहीं सुनी और एक वार अवसर पाकर राता से चुप चाप भाग कर फिर दिल्ली आगए। इस बार उसको सौभाग्यवश पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके साथ आपके सुप्रसिद्ध प्रधान शिष्य पडित श्री गेंडेराय जी महाराज भी थे। नौवतराय उपाश्रय में उनके पास आने जान लगा।
एक दिन नौवतराय ने श्री सोहनलाल जी महाराज से निवेदन किया कि
'गुरुदेव ! मैं आपके श्री चरणों में बैठ कर जिन दीक्षा लेनी चाहता हूं।"
इस पर उन्होंने उत्तर दिया
"दृढ़ निश्चय करलो तुमको क्या करना है ? तुम देखते हो। कि जैन साधु की जीवनचर्या बड़ी कठोर होती है। यहां तो जीवित ही अपने को मृतक समझना होगा। संसार की भोग वासनाओं के लिये यहां अणुमात्र भी अवकाश नहीं है। यहां