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गणि उदयचन्द जी का सम्पर्क
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एक बार नौबतराय के पिता ने जो उनकी जन्म पत्री पर विचार किया तो उनको स्पष्ट दिखलाई दे गया कि यह वालक एक उच्चकोटि का तपस्वी साधु बनेगा । अस्तु अब उन्होंने बालक नौबतराय की दिनचर्या पर विशेष ध्यान देना आरम्भ किया । उन्होंने उनको हिन्दी तथा संस्कृत का अध्ययन कराना आरम्भ किया ।
कुछ दिनों बाद नौबतराय जी के पिता ने सोचा कि नौबत की साधुओं की संगति छुड़ाने के लिये उसे दिल्ली भेज देना चाहिये । दिल्ली के एक लाला पन्नालाल जी ओसवाल धनिक उनके घनिष्ट मित्र थे । वह स्थानकवासी जैन होने के साथ साथ अत्यधिक धार्मिक प्रकृति के थे । अस्तु पंडित शिवजीराम ने नौबतराय को लाला पन्नालाल के पास दिल्ली भेज दिया ।
लाला पन्नालाल के देवीदयाल नामक एक चाचा थे । उनकी दरीबे मे पगड़ियों की दूकान थी । नौबतराव देबीदयाल जी के साथ उपाश्रय मे जाने लगा । क्रमशः उसका सम्पर्क जैन मुनियों से बढ़ा और उसके मन के उनके चरित्र के प्रांत अत्यधिक श्रद्धा उत्पन्न हो गई ।
नौबतराय को जब दिल्ली मे रहते हुए पांच वर्ष होगए तो पूज्य मुनि कचौड़ीमल जी महाराज की सम्प्रदाय के साधुओं का चातुर्मास संवत् १६३६ में लाला पन्नालाल के मकान मे हुआ। नौबतराय को अब जैन मुनियों की जीवनचर्या को निकट से देखने का अवसर मिला । अब उसको विश्वास हो गया कि संसार मे आत्म कल्याण का सबसे उत्तम मार्ग जैन दीक्षा लेना है । नौवतराय को इसके पश्चात् संवत् १६४० में मुनि श्री गंभीरमल जी के दिल्ली चातुर्मास के समय उनके पास