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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी नोआगम द्रव्य निक्षेप कहते हैं। इस निक्षेप के द्वारा हमको सभी द्रव्यों के वास्तविक रूप का पता लगता है। इसी द्रव्य निक्षेप के द्वारा किसी भूतपूर्व हवलदार को हवलदार कह कर तथा भूतपूर्व जज को जज साहिब कह कर पुकारते हैं।
किसी वस्तु के वर्तमान रूप को जैसी की तैसी दशा में जानना या वर्णन करना भाव नय है। जैसे दफ्तर में क्लर्की करने वाले किसी हवलदार को क्लर्क ही कहना और हवलदार न कहना। पदच्युत राजा यदि जंगल में रह कर लकड़ी काटता हो तो उसे लकड़हारा ही कहना, राजा न कहना भाव निक्षेप है। इस भाव निक्षेप के द्वारा अप्रकृत वर्णन का निराकरण करके प्रकृत रूप का वर्णन किया जाता है। ___ नाम, स्थापना तथा द्रव्य निक्षेप इन तीनों निक्षेपों में वस्तु के द्रत्यक्ष स्वरूप का वर्णन किया जाता है। इस लिये भाव ही वन्दनीय है।
प्रायः लोग अज्ञानवश नाम, स्थापना तथा द्रव्य का वर्णन भाव रूप मे करके न केवल अपने अज्ञान का परिचय देते हैं, वरन् अपने उस अज्ञान द्वारा अपने लिये असख्य कर्मों का भी बंध करते हैं। अतएव किसी वस्तु तत्व के स्वरूप पर विचार करते समय उसका स्वरूप इन चारों निक्षेपों की दृष्टि से ठीक ठीक जानना चाहिये।
अम्बाला के १६३६ के उसी चातुर्मास मे मुनि श्री गैंडेराय जी को ज्वर हो गया और दस्त लग गये तो आत्माराम जी संवेगी की जोर से आवाज आने लगी कि एक को तो लम्बा पा दिया (लम्बा डाल दिया), अव बाकी की बारी हैं। इस संबन्ध में यहां तक सुनने मे आया कि मूठ चला कर समाप्त कर दिया