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प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी
२४६ युगपत् ज्ञानामुत्पत्तिर्मनसो लिंगम् । इस लिये लोगों का यह कहना कि वह प्रतिमा के ध्यान के द्वारा भगवान् का ध्यान करते हैं, सिद्धान्त के विरुद्ध है। ऐसे व्यक्ति केवल प्रतिमा का ही ध्यान करते है, भगवान् का ध्यान नहीं करते। ___इस प्रकार तदाकार स्थापमा के स्वरूप को ठीक ठीक जान कर मूर्ति अथवा चित्र आदि में उस वस्तु के मूर्ति आदि की स्थापना ही माननी चाहिये, स्वयं उस वस्तु को ही मूर्ति अथवा चित्र रूप नहीं मान लेना चाहिये। ऐसा मानने वाले स्थापना निक्षेप के स्वरूप को ठीक नहीं समझते।
किसी वस्तु को उस वस्तु के त्रिकालाबाधित रूप में जानना द्रव्य निक्षेप है। जिस प्रकार किसी जीवित प्राणी को शरीर सहित होने पर भी जीव बतलाना, यद्यपि शरीर पुद्गल का बना होता है और उसमे जीव नहीं होता। किन्तु जीवित प्राणी के शरीर में जीवात्मा के संयोग के कारण हम उसको जीव कहते हैं कि किसी जीव को मत सताओ। उसके विषय मे हमारा यह कथन उसके त्रिकालाबाधित स्वरूप की अपेक्षा से है।
द्रव्य नाम के दो भेद हैं एक आगम द्रव्य, दूसरा नोअगम द्रव्य । किसी द्रव्य के स्वरूप को उसके शास्त्र वर्णित रूप में जानना आगम द्रव्य है नय है। किन्तु उसको जायक शरीर, उसके भावी रूप तथा उसके भत तथा भविष्य के भिन्न भिन्न रूपों की दृष्टि से उसको जानने अथवा उसका वर्णन करने को,