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प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी
२५१ जावेगा इत्यादि इस पर मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज ने चैलेंज दिया कि. “यदि कुछ शक्ती है तो उसे हमको दिखलाओ, गैडेराम जी को इस समय असाता वेदनीय कर्म का उदय है। यह कष्ट साता वेदनीय का उदय होने अथवा असाता की मियाद समाप्त होने पर अपने आप शान्त हो जावेगा। जो साधु मंत्र अथवा मूठ आदि की बात सोचता है वह साधु नहीं हो सकता, वरन् उसमें तो मनुष्यता का भी अभाव है।" __ इसके बाद लगभग एक सप्ताह में मुनि श्री गैडेराम जी का स्वास्थ्य ठीक हो गया और अम्बाले का यह चातुमोस आनन्द पूर्वक समाप्त हो गया।
श्रात्माराम जी ने अपना चातुर्मास समाप्त करके जयपुर की ओर विहार किया। श्री सोहनलाल जी उसका पीछा करना चाहते थे। अतएव उन्होंने पूज्य आचार्य मोतीराम जी महाराज से यह अनुमति मांगी कि वह पांच वर्ष तक उसका पीछा करेंगे। क्योंकि उनको आशा थी कि इस बीच में वह कहीं न कहीं तो शास्त्रार्थ के लिये मुकाबले पर आवेगा। किन्तु आत्माराम जी अपने पीछे पीछे श्री मुनि सोहनलाल जी के आने का समाचार पाकर ऐसे भागे कि वह जयपुर में अल्प विश्राम कर वहां से आगे अजमेर तथा ब्यावर होते हुये मारवाड़ की ओर इस प्रकार शीघ्रता पूर्वक निकल गए कि उनका पता सुगमता से न लगाया जा सके। श्री मुनि सोहनलाल जी ने उसका व्यावर तक पीछा किया । अन्त में पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज ने मुनि श्री सोहनलाल जी के पास संदेश भेजा कि
'जो भाग गया उसका पीछा छोड़ दिया जावे और मुनि सोहनलाल जी उसका पीछा न करके वापिस पाजावें ।'