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प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी
है कि प्रतिमा जी के पूजन से जीव मोक्ष में चला जाता है। फिर धर्म हिमा में है या दया में और भगवान की पाता अहिंसा मे है या हिंसा में है " । ___इस पर आत्माराम जी चुप हो गए और उन्होंने लाला जीतमल को कोई उत्तर नहीं दिया।
संवत् १६८ में पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज ने अपना चौमासा जीरे नगर में किया । वहां से विहार करके श्राप जगरावां नगर पधारे। यहां अन्य भी मुनि महाराज उनके दशनों के लिए पधारे। उधर विशनचन्द यादि साधु भी अम्बाला से विहार करके जगरावां आ गए थे। जब उनको पता चला कि श्री पूज्य अमरसिंह जी महाराज तथा अन्य अनेक साघु जगरावां में विराजमान हैं तो इनके मन में यह निश्चय हो गया कि हम जो सूत्रों के विरुद्ध आचरण करते हैं सो पूज्य महाराज को अच्छी तरह पता लग गया है, अन्तु बह यहां हमको गच्छ से निकालने के लिये ही एकत्रित हुए हैं। ऐसी । अवस्था मे हमारे पास के सूत्र आदि ग्रन्थ छीन लिये जायेंगे। अतएव उन्होंने वापिस लौट कर सव पुस्तके आदि लुधियाना में रख कर फिर जगरावां जाकर पूज्य महाराज के दर्शन किये।
पूज्य श्री अमर अमरचंद जी महाराज ने निम्नलिखित । साधुओं को जगरावां में अपने गच्छ से निकाल दिया
१ विशन चन्द, २ हुकम चन्द, ३ निहाल चन्द, ४ निधान मल्ल, ५ सलामत राय, ६ तुलसी राम, ७धनैया मल्ल, ८चम्पा लाल, ६ कल्याण चन्द, १० हाकम चन्द, ११ गुरांदत्ता मल तथा १२ रला राम ।
यह लोग जगरावां से चल कर लुधियाना में आत्मा राम के पास चले गए।